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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को

admin 18.03.2015

(18 марта 2015) नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पिछली यूपीए सरकार

के फैसले को पलटते हुए जाटों को दिए गए आरक्षण को रद कर दिया है। तत्कालीन सरकार ने अध्ािसूचना के जरिए जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे से आरक्षण दिया था।

मालूम हो कि यूपीए सरकार ने लोकसभा चुनाव से ऐन पहले ओबीसी कोटे से आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की थी। लेकिन इसे ओबीसी आरक्षण रक्षा समिति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और इस फैसले के जरिये तत्कालीन सरकार पर चुनावी लाभ उठाने का आरोप लगाया था। याचिका में कहा गया था कि जाट सामाजिक और आर्थिक रूप से सबल होते हैं इसलिए ओबीसी कोटे के तहत इन्हें आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।

याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट कोर्ट की जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर फली नरीमन की दो सदस्यीय खंडपीठ ने 11 दिसंबर 2014 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की तर्क को मानते हुए कहा कि ओबीसी आरक्षण के लिए आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन जरूरी होना चाहिए।

आज के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ओबीसी श्रेणी में नई-नई जातियों को लगातार शामिल किया जा रहा है, किसी भी जाति को अभी तक इसमें से बाहर नहीं निकाला गया है। बेंच ने अपने फैसले में कहा, ‘जाति एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन आरक्षण के लिए यही एक आधार नहीं हो सकता है। अतीत में अगर कोई गलती हुई है तो उसके आधार पर और गलतियां करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सरकारों को ट्रांसजेंडरों को ओबीसी में शामिल करने पर विचार करना चाहिए।

वहीं दूसरी ओर, जाट नेता यशपाल मलिक ने कहा कि वह फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे और आंदोलन भी करेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि संसद को अधिकार है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकती है। ऐसा शाहबानो प्रकरण मेें हो चुका है। मलिक ने कहा कि इस देश में अपना हक कौन छोड़ता है, जो हम छोड़ देंगे। हरियाणा दिग्गज जाट नेता व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने मलिक के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि जब यादवों और गुर्जरों को आरक्षण मिल सकता है तो जाटों को क्यों नहीं?

लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा 4 मार्च 2014 को किए गए इस फैसले में दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल, बिहार, मध्य प्रदेश, और हरियाणा के अलावा राजस्स्थान के जाटों को केंद्रीय सूची में शामिल किया गया था। इसके आधार पर जाटों को केंद्र सरकार की नौकरियों और उच्च शिक्षा में ओबीसी के तहत आरक्षण का हक मिल गया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। ओबीसी रक्षा समिति समेत कई संगठनों ने कहा था कि ओबीसी कमीशन यह कह चुका है कि जाट सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े नहीं हैं।

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